Yugbodh ka Hastakshar
I read this poem and found it very motivational. Wanted to share it with all.
दिग्भ्रमित क्या कर सकेंगीं, भ्रांतियाँ मुझको डगर में;
मैं समय के भाल पर, युगबोध का हस्ताक्षर|
कर चुका हर पल समर्पित जागरण को;
नींद को अब रात भर सोने न दूंगा;
है अंधेरे को खुली मेरी चुनौती;
रोशनी का अपहरण होने न दूंगा |
जानता अच्छी तरह हूँ, आंधियों के मैं इरादे;
इसलिए ही; जल रहे जो दीप उनका पक्षधर हूँ |