Just a few random thoughts!
These are some of the thoughts that came to my mind in the wake of the recent terror attacks. They are not even remotely as practical as what you all have been discussing. Actually, its a dangerously romantic point of view. But then again, I guess, maybe that’s something we all need too. The thoughts are all penned down in hindi so I dont know how many people will actually be able to read them here. Although I would ideally wish for all of you to read them.
Keep reading. Keep smiling and most importantly, keep the faith.
कुम्हार तेरे हाथ की मिटटी दे दे
मुझे एक बढ़िया दिल बनाना है
मिलाना ज़रूर थोड़े आँसू उसमे
मुझे एक एहसास जगाना है
सपनों से गूंथना बराबर उसको
मुझे रौशनी को फैलाना है
प्यार में ज़रा लपेट के देना
मुझे ज़िन्दगी को ज़रा जगाना है
______________________________
यहाँ हर दिल बेज़ुबां है
हर चेहरे की एक दास्तां है
आँख झुक जाती किसी की है हया से
और ग़म से नज़रें कोई चुरा रहा है
बग़ल में साया खड़ा दिखता तो लगता है
गुमनाम चेहरा अनजान बातें कर चला है
खोखलापन रूह का करता है आवाजें
उँगलियाँ डाले है बैठा एहसास कानों मे
_______________________________
ऐ सूरज! मेरी खिड़की मैं नज़र आना तुम
मुझे अपना चेहरा दिखाना तुम
जब ग़म के बादल छाए हों
निराशा कि चलती हवाएं हों
कलियाँ जब मुरझाई हों
फूलों पर सुस्ती छाई हो
तब अपना चेहरा दिखाना तुम
ऐ सूरज! मेरी खिड़की में नज़र आना तुम
किसी आँख के आंसू पोंछने को
मेरे हाथ ना कभी उठ पाएं जब
मेरी कमियों पर विचार किसी के
मेरे कर्ण ना कभी सुन पाएं जब
तब अपना चेहरा दिखाना तुम
ऐ सूरज! मेरी खिड़की में नज़र आना तुम
जब जीवन थक कर चूर हो
और मंजिल बस कुछ दूर हो
घायल जब उम्मीद हो
जब निशा कि होती जीत हो
तब अपना चेहरा दिखाना तुम
ऐ सूरज! मेरी खिड़की में नज़र आना तुम
ऐ सूरज! आना ज़रुर!