Ishwar ki Khoj by Desh
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वो चढ़ाही बहुत थकाने वाली थी. आखिरकार हम उस टीले पर पहुँच ही गए. वहां देखा तो एक बाबाजी हमसे पहले बैठे थे. नया चेहरा दिखा तो बातें शुरू हो गयीं. उन्होंने बताया कि वो हरयाणा के रहने वाले हैं. तो यहाँ हिमालय के पर्वत पर क्या कर रहे हैं? कहने लगे भगवान को खोजने निकला हूँ | “ह्म्म्म.. तो भगवान कोई विचित्र प्राणी होगा – जिसे इतना खोजना पड़ता है?” हमने पुछा. नहीं पर दुनिया से दूर निकलो तो ही उस से तार जुड़ता है न, वो बोले. “पर आप तो उसको अन्तर्यामी कहते हो”. हाँ वैसे तो हर जगह है वो. पर दीखता नहीं है न आसानी से. “तो बाबाजी वो खोजने से मिलेगा या खुद को खो जाने से? हम खुद को देखना नहीं चाहते, और उसको देखने की लालसा में दर दर भटकते हैं. अपने आप को वास्तव में देखना ही ईश्वर को देखना है.
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