Indian Knowledge Export: Past & Future
My lecture started with an outline of Indian knowledge export in botany to Europe. This was the primary “spice trade” of 6 major “East India Companies” established in Portugal, France, Britain, Holland, Denmark and Sweden. This transfer (or theft?) launched European botany for medicine and agricultural uses, and funded the major empires. I then discuss how there are similar projects today for uncontrolled knowledge transfer which India does not protect or even take seriously. In particular, I highlighted the West’s mining of Indian expertise in Consciousness Studies, both experiential and theoretical. Some of these ultra-ambitious (moon shot) projects could produce major breakthroughs. Should India remain once again a mere bystander? Even though it was the day before Divali, a room full of JNU students heard my lecture very attentively and participated in Q&A. The following day (Divali), I was invited for coffee at a restaurant by a group of JNU students wanting to explore ways of working with me. We identified a few concrete projects that will be pursued.
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भारतीय ज्ञान निर्यात: अतीत और भविष्य
यूरोप में वनस्पति विज्ञान में भारतीय ज्ञान निर्यात की रूपरेखा के साथ मेरा व्याख्यान आरम्भ हुआ | पुर्तगाल, फ्रांस, ब्रिटेन, हॉलैंड, डेनमार्क और स्वीडन में स्थापित 6 प्रमुख “ईस्ट इंडिया कंपनियों” का यह प्राथमिक “मसाला व्यापार” था | इस हस्तांतरण (या चोरी?) ने दवा और कृषि उपयोगों के लिए यूरोपीय वनस्पति विज्ञान आरम्भ किया, और प्रमुख साम्राज्यों को वित्त पोषित किया | फिर मैं चर्चा करता हूँ कि अनियंत्रित ज्ञान हस्तांतरण के लिए किस प्रकार आज भी समान परियोजनाएं हैं, जिनका भारत रक्षा नहीं करता है या गंभीरता से भी नहीं लेता है | विशेष रूप से, मैंने अनुभवजन्य और सैद्धांतिक – दोनों चेतना अध्ययनों में भारतीय विशेषज्ञता का पश्चिम द्वारा खनन पर प्रकाश डाला | इनमें से कुछ अति-महत्वाकांक्षी (मून शॉट) परियोजनाएं बड़ी सफलताएं उत्पन्न कर सकती हैं | क्या भारत को पुनः एक दर्शक बना रहना चाहिए ? भले ही यह दिवाली से एक दिन पहले था, एक भरे कमरे में जेएनयू के छात्रों ने मेरा व्याख्यान बहुत सावधानी से सुना और प्रश्नोत्तरी में भाग लिया | अगले दिन (दिवाली) में मुझे जेएनयू छात्रों के एक समूह द्वारा एक रेस्तरां में कॉफी के लिए आमंत्रित किया गया था जो मेरे साथ काम करने के माध्यमों को ढूँढने के इच्छुक थे | हमने कुछ ठोस परियोजनाओं की पहचान की है जिनपर काम किया जाएगा |
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