Discussion on Bhagwad Gita: Chapter 1; Verse 40 through 47
कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः।
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत॥१-४०॥
Hindi
कुल के क्षय हो जाने पर कुल के सनातन (सदियों से चल रहे) कुलधर्म भी नष्ट हो जाते हैं। और कुल के धर्म नष्ट हो जाने पर सभी प्रकार के अधर्म बढने लगते हैं।
brajbhasha / ब्रजभाषा
कुल नाश जबहीं हुई जावत है,
कुल धरम सनातन नासत हैं.
जब धरम नसावत कुल, कुल के
तब पापहूँ पाँव पसारत हैं
After the lineage is maligned and the Dharma of our lineage is also destroyed. Once the dharma of our lineage is destroyed, adharma of all kinds starts growing.
अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः।
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसंकरः॥१-४१॥
Hindi
अधर्म फैल जाने पर, हे कृष्ण, कुल की स्त्रियाँ भी दूषित हो जाती हैं। और हे वार्ष्णेय, स्त्रियों के दूषित हो जाने पर वर्ण धर्म नष्ट हो जाता है।
brajbhasha / ब्रजभाषा
कुल नाश जबहीं हुई जावत हैं,
कुल नारिहूँ दूषित होवत हैं.
जब नारिहूँ दूषित होवत हैं ,
तब वर्ण दोष बढ़ी जावत हैं
After the adharma (negative dharma) starts growing, the women of the family get polluted, and after that the dharma of the varna also gets destroyed.
संकरो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च।
पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः॥१-४२॥
Hindi
कुल के कुलघाती वर्णसंकर (वर्ण धर्म के न पालन से) नरक में गिरते हैं। इन के पितृ जन भी पिण्ड और जल की परम्पराओं के नष्ट हो जाने से (श्राद्ध आदि का पालन न करने से) अधोगति को प्राप्त होते हैं (उनका उद्धार नहीं होता)।
brajbhasha / ब्रजभाषा
यहि जाति कुजाती कुल घाती,
कुल, कुल कौ नरक लई जावत है,
यहि सों अति घातक कि इनके,
लोग पितर गिर जावत हैं
Those who destroy the dharma of their lineage fall into the hell. The forefathers of these people don’t receive proper rituals based care and their salvation is not possible.
दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसंकरकारकैः।
उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः॥१-४३॥
Hindi
इस प्रकार वर्ण भ्रष्ट कुलघातियों के दोषों से उन के सनातन कुल धर्म और जाति धर्म नष्ट हो जाते हैं।
brajbhasha / ब्रजभाषा
इन जाति कुजाति के दोसन सों,
कुल जाति के धरम विनासत हैं.
कुल घाति के धरम सनातन जो,
यहि कारन सों ही नसावत हैं
The coming generations of these people, who have hurt the dharma of the lineage, also get destoyed.
उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन।
नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम॥१-४४॥
Hindi
हे जनार्दन, कुलधर्म भ्रष्ट हुये मनुष्यों को अनिश्चित समय तक नरक में वास करना पडता है, ऐसा हमने सुना है।
brajbhasha / ब्रजभाषा
जिनके कुल धरम विनास भये,
तिनके ही नरक मांहीं वास भये .
ऐसों ही जनार्दन जात सुन्यो,
जन ऐसे नरक आवास भये
Hey Janardhan, people, whose dharma of the lineage has been destroyed, stay in the hell for indefinite time. So, I have heard.
अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्।
यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः॥१-४५॥
Hindi
अहो ! हम इस महापाप को करने के लिये आतुर हो यहाँ खडे हैं। राज्य और सुख के लोभ में अपने ही स्वजनों को मारने के लिये व्याकुल हैं।
brajbhasha / ब्रजभाषा
यहि शोक की बात घनेरी विभो !
सुख राज के लोभ सों पाप करैं.
अथ हेतु भये धिक् ! उद्यत जो,
कुल आपुनि नाश ही आपु करें
Hey Sir, we are standing here eager to participate in this great sin! For the desire of kingdom and happiness, we are anxious to kill our own relatives.
यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः।
धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत्॥१-४६॥
Hindi
यदि मेरे विरोध रहित रहते हुये, शस्त्र उठाये बिना भी यह धृतराष्ट्र के पुत्र हाथों में शस्त्र पकडे मुझे इस युद्ध भूमि में मार डालें, तो वह मेरे लिये (युद्ध करने की जगह) ज्यादा अच्छा होगा।
brajbhasha / ब्रजभाषा
धृत राष्ट्र के पुत्र मोहे रन में,
मारें तबहूँ कल्याण मोरों .
मैं शस्त्र हीन हुई, जुद्ध विरत,
न चाहूँ नैकहूँ जुद्ध करौं
If I show no resistance and don’t pick my arms and the sons of Dhritrashtra, kill me in this battle – I think that will be better than fighting them.
संजय बोले
एवमुक्त्वार्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपाविशत्।
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः॥१-४७॥
Hindi
यह कह कर शोक से उद्विग्न हुये मन से अर्जुन अपने धनुष बाण छोड कर रथ के पिछले भाग में बैठ गये।
brajbhasha / ब्रजभाषा
रथ मांहीं पाछे बैठि गयो,
रन भूमहीं अर्जुन शोक मना.
शर चाप को त्याग दियो कहिकै,
नाहीं जुद्ध करहूँ कबहूँ कृष्णा!
With this, in pain, anguish and sorrow, Arjun left his bow and sat at the back of his chariot.
Discussion
Just because something is in Bhagwad Gita, doesn’t make it the philosophy of Gita or of Krishna. There are two significant things about Hindu scriptures:
1. They are mostly question and answer types, where the seeker grows as the time goes on. So, the seeker shows signs of immaturity and asks and even frames questions out his/her ignorance.
2. Unfortunately, instead of learning from our texts, we have made our texts into something to be only revered. So, we look at everything in it as sacred. Which means we do not hesitate to bestow divinity to even Arjun, who was in total ignorance before the message of Gita was given.
What Arjun says here about how fighting and killing his close kith and kin will hurt the dharma of his family and “pollute” the women and make the entire generations go to hell, comes out of ignorance. The entire message of Gita, heretofore, is about the irrelevance of attachments and relationships in the broader sense.
Because of the basic nature of Q&A format and the fact that most of us Hindus rever this book, we do not understand the context of Gita properly.
Without appreciating Arjun’s ignorance; the wisdom of Shri Krishna cannot be comprehended.
Violence is not a great idea. It should never be used for anything – but the truth is that Violence is still used by cosmos to regenerate itself. One doesn’t need to go in search for violent situations, but if some come up and despite all the efforts to diffuse it, the enemy still insists on war, then it is not a prudent idea to leave the field.
In the next chapter, we will come across the reply from Shri Krishna, where he will take Arjun through the first “baby steps” in the spiritual exploration, before being more direct as we go.